अपने ही देश में
हम शरणार्थी
उपेक्षित जैसे उगी
अनचाही घास
संसद के कंक्रीट आँगन में
लोकतंत्र का अट्टहास
हम ज़िन्दा पुरातत्व
और इतिहास
मरते भी नहीं अभागे
कैंपों में सड़ते कृमि
कुलबुलाते बार बार
अपने अकेले कवियों के गद्य में
जुलूसों में जैसे फैलते
बेतरतीब रंगों में
केन्द्र सरकारें हैं
खुरदुरा कैनवस इनका
हम
गाते हैं बेसुरी राग
मुकाम और बंदिश का कोई
तरतीब नहीं हमें
लगता ही नहीं संगीत शिरोमणि
शारंगदेव के वंशज हैं
मूलाधार से बेढंगी
खींचते सड़कों पर तान
ध्यान नहीं देता फिर भी
हिंदुस्तान
हम कश्मीरी शरणार्थी
संघियों के लिए नेहरूपंथी
सेक्युलरवादी
वामियों को लगते
हिंदुत्ववादी दक्षिणपंथी
जेहादियों को काफिर
'जासूस भारत के'
शेख अब्दुल्लाहों की दृष्टि में
हम कुफ्र के दूत
लिखा शरणार्थी-कैम्प में
कवि मोती लाल 'साक़ी' ने
हम इस देश के नये अछूत
हम शरणार्थी
सौतेले युग में दशकों से बैठे
तख्तियां लिए जंतर-मंतर पर
संसद की खिड़की से देखता
हर प्रधानमंत्री
थोड़े थोड़े अंतर पर
ये ढीठ अभी भी नहीं हुए
छूमंतर
(सुप्रीमकोर्ट-वकील और राजनीतिक विश्लेषक अशोक भान के लिए)
20/6/2021
Dr. Agni Shekhar
Poet , Writer, Activist in Exile
PT -3 THE UNTOLD STORY - GENOCIDE OF KASHMIRI PANDITS (19 JANUARY 1990) || English Subtitles