19 जनवरी 1990 की वो रात -अग्निशेखर काल का चक्र निर्बाध घूमता है।लौट लौट आते हैं वर्ष,महीने और उनकी तिथियाँ।तिथियों से जुड़ीं हमारी यादें,हर्ष-विषाद लौट आते हैं।ऐसी ही एक डरावनी तारीख का नाम है-19 जनवरी।सन् 1990 की कोख से निकली एक अविस्मरणीय काली रात।एक फासीवादी रात उतरी थी कश्मीर के आकाश से।एक साथ हज़ारों हज़ार भुतही आवाज़ें निकालती,चीख़ती, चिल्लाती, हुआं हुआं करती,भौंकती, चिंघाड़ती, दहाड़ती हुई रात।क्रुद्ध और पगलाई हुई रात। कल्पना कीजिए,उस रात ,उस घड़ी आप हमारी जगह थे।बाहर बर्फानी ठंड है।आप खिड़की दरवाज़े बंद करके घर में बैठे हैं।
बाल बच्चे ,माँ बाप घर में हैं।बीबी रसोई में है।बच्चे बातों में मशगूल हैं।सहमी हुई धीमी आवाज़ में रेडियो अथवा टीवी चल रहा है या आप घर के किसी सदस्य के काम से लौट आने की बाट जोह रहे हैं।या घर में कोई बीमार है।कराह रहा है।कोई गर्भवती बच्चा जन रही है।या आप सोग मना रहे हैं।या आप सोए हैं।
किसी को डाँट रहे हैं।या प्यार कर रहे हैं।घर के किसी कमरे में आपकी जवान बेटी या बहु कुछ लिख पढ़ रही है ।या आप दूसरे दिन की कोई योजना बना रहे हैं। और सहसा बाहर लकवा मार देने वाला शोर सुनाई पड़ता है।जैसे तमाम कश्मीरी भट्टों (पंडितों) के घरों की छतें किसी सुनामी ने एकसाथ हवा में उड़ा दी हों।
अब इन बिना छतों के घरों में आग के दहकते मूसल गिरने वाले हों।समय हठात् ठहर जाता है।चारों तरफ से शोर के बारूदी फ़व्वारे उठ रहे हैं।गली मुहल्ले,अड़ोस-पड़ोस,चौक-चौराहे सब दंगाइयों से अटे पड़े हैं।अचानक हर तरफ हज़ारों मस्जिदों के लाउड़-स्पीकरों से रूह कँपा देने वाले नारे गूँजने लगते हैं:
हम क्या चाहते ?..आज़ादी !... आज़ादी का मतलब क्या ?..लाइल्लाह इल्लाह !..पाकिस्तान से रिश्ता क्या ?..लाइल्लाह इल्लाह !..
बाहर क़हर बरपा है।दहशत पैदा करने का जश्न है।उत्सव विनाशलीला का।गली मुहल्लों में यमदूत घूम घूमकर हुड़दंग मचा रहे हैं।उछल उछलकर नारे गुंजा रहे हैं।सड़कें पीट रहे हैं।छड़ियों से,डंडों से दुकानों,बिजली के खम्भों को पीटा जा रहा है।
सीटियाँ बज रही हैं।और घरों के भीतर काठ हो गए भट्टों की मुट्ठियों में जान भिंची हुई है।मस्जिदों से नारे गूँज रहे हैं : ‘असि छु बनावुन पाॅकिस्तान..बटव रोस्तुय बटन्यव सान !’.. हम पाकिस्तान बनाएँगे.. बिना भट्टों के भट्टनियां ले जाएँगे।...यह ऐसे घृणित और अफसोसनाक नारे हैं जिन्हें सुनकर अनेक संवेदनशील मुसलमान भी शर्मिंदा हुए होंगे ।निश्चित रूप से।
भट्टनियां ले जाएँगे ? भट्टों को मार डालेंगे ? ऐसा पाकिस्तान बनाएँगे ? घरों के भीतर बिजली बुझा दी जाती है।माताएँ सीना पीट रही हैं।पुरुष घर के बंद दरवाज़ों के पीछे सामान लदे सन्दूक या और कोई अवरोधक सटा कर रख रहे है।खिड़कियों को कसकर बंद किया जा रहा है।ऐसा करते हाथ थरथरा रहे हैं।टाँगें काँप रही हैं।बच्चों को समझा बुझाकर चुप रहने को कहा जा रहा है।
उनके चेहरों पर भय है।आँखें रुआँसा हैं।बाहर को आए होंठ हिल रहे हैं। जवान बेटियों के चेहरे सूख गए हैं।पलक झपकते ही घर अनिष्ट की शंकाओं से काल कोठरी में बदल गया है। दोनों दोनों हाथ हवा में उठ रहे हैं...झोलियां फैलाई जा रही हैं..अस्फुट बुदबुदाहट है.. हे,माता खीरभवानी ! ..हे,नन्दिकेश्वर भैरव !.. हे,महादेव !...दया करो महागणेश !..रक्षा करो त्रिपुरा !.. बाहर शोर और हुड़दंग थमने का नाम नहीं ले रहा।चारों ओर ..शोर..शोर..आलमगीर शोर..यहाँ क्या चलेगा ?..निज़ामे मुस्तफ़ा !..ऐ काफ़िरो, ऐ जाबिरो,कश्मीर हमारा छोड़ दो !..भारतीय कुत्तो,वापस जाओ !..इंडियन डाॅग्स,गो बैक !..अगर कश्मीर में रहना होगा,अल्लाहो अकबर कहना होगा..असि छु बनावुन पाॅकिस्तान..बटव रोस्तुय बटन्यव सान !’.. हम पाकिस्तान बनाएँगे.. बिना भट्टों के भट्टनियां ले जाएँगे।... जिस किसी के घर में फोन है,वह अपने फोन वाले रिश्तेदार से पूछ रहा है वहाँ का हाल।पुलिस थानों में फोन की घंटियां बज रही हैं ।
कहते हैं, वे लाचार हैं ।पर्याप्त पुलिस बल नहीं है ।बडे अफसरों के घरों में भी कश्मीरी पंडितों की फोन बज रहे हैं ।कोई जवाब नहीं । या लाजवाब हैं। जल्दी जल्दी में जवान बेटियों को छिपाने की भागदौड़ है।कोई घर की ढलानवाली छत के नीचे रखे कोयले की बोरियों के पीछे बेटियों को ले जाता है।कोई घर में सूखी लकड़ी के ढेर के पीछे उन्हें छिपने को कहता है।कोई पिछवाड़े कमरे में संदूकों के पीछे सुरक्षित कोना तलाशता है।
कोई तहाकर रखी लिहाफों के पीछे बहु या बेटी को जा छिपने के निर्देश देता है।किसी किसी बाप ने बेटी या बेटियों को चाक़ू या ब्लेड भी दिया।अंतिम विकल्प के रूप में।इतिहास किस तरह दोहराता है ख़ुद को।कपोल कल्पना सी लगने वाली विभाजन की ऐसी कितनी त्रासद कहानियाँ वास्तविक रही होंगी ! ऐसा कैसे हो सकता है ,समझ में नहीं आ रहा था।कुछ राजनीतिक विश्लेषक थे जो इस विस्फोटक परिस्थिति के निर्माण के पीछे विगत दो अनेक वर्षों के साम्प्रदायिक घटनाक्रम के पनपने के प्रति सरकारों की लापरवाही देख रहे थे।
बाहर अंधेरा कितना घना और भयावह हुआ जा रहा था।चुपचाप द्वार खोलकर बहु-बेटी ,बूढ़े माँ बाप लेकर घर से भागने का विकल्प भी न था।फिर आदमी ऐसे में जाए तो कहाँ जाए !खतरा बाहर भी था।खतरा भीतर भी था।दहशत का यह कैसा इह-लौकिक अध्यात्म था कि क्षणांश में बाहर और भीतर का भेद ही मिट गया था।सभी कश्मीरी पंडित अभेद की अवस्था में आ गए थे।अभेद की यह अवस्था अकल्पनीय थी।इसलिए अविस्मरणीय भी।
आवाज़ें लगातार आरोह और अवरोह पर थीं।शायद अब थमने वाला हो यह जुनून।शायद अब हो गया।शायद अब कल जारी रखेंगें।शायद ईश्वर कोई चमत्कार करेगा। शायद अभी बादल छाएँगे ।शायद तेज़ बारिश होगी..तड-तड-तड..और सब भाग खड़े होंगे घरों को।शायद..।लेकिन आकाश में बादल तो थे ही नहीं।फिर यह कैसी आवाज़ रही होगी..! कहीं पटाखों की लड़ियाँ जलाई गयी होंगी।नहीं,ऐसा कुछ नहीं था।यह उन्मादी नारों का बारूद फटा होगा ह
न भूलो न माफ़ करो ! प्रतिशोध की अग्नि जलती रहे ,#नरसंहार कश्मीरी पंडितों का
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कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था।
★ जिसने
कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम
भागो या मरो।
★इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी।
करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों
में रहने को मजबूर हो गए।
★300 से
अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या
★ घाटी
में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से
हुई।
★भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील
कश्मीरी पंडित, तिलक
लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी।
★इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर
हत्या कर दी गई।
★ उस
दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से
अधिक हिंदू-महिलाओँ और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की।
★ सरेआम
हुए थे बलात्कार ! मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ
आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद आरा मशीन से काट कर उसकी हत्या कर
दी।
★घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में
सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात बदतर हो गए।
★ एक
स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब
– उल
– मुजाहिदीन
की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- ‘सभी हिंदू अपना सामान बांधें और
कश्मीर छोड़ कर चले जाएं’।
★ एक
अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अलसफा, ने
इस निष्कासन के आदेश को प्रतिदिन दोहराया।
★मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने
लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं। या तो मुस्लिम बन
जाओ या कश्मीर छोड़ दो
★ कश्मीरी
पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था ‘या
तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो।
★ पाकिस्तान
की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से
अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया।
★इस सबके बीच कश्मीर से पंडित रातों -रात अपना
सबकुछ छोड़ने के मजबूर हो गए।
★कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार
★डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को
बस रोककर 15 हिंदुओं
की हत्या कर दी गई।
★संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर
में घुसकर 7 कश्मीरी
पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया।
★वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को
हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी
परिवार के 23 लोगों
को गोलियों से भून कर मार डाला।
★प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को
उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 मौत
के घाट उतार दिया था, इसमें
11 बच्चे
भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं
ने पलायन किया था।
★ 2000 में
अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ
यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी।
★ 20 मार्च
2000 चित्ती
सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे 36 सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली
मार कर हत्या कर दी।
★ 2001 में
डोडा में 6 हिंदुओं
की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
★ 2001 जम्मू
कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार, सेना के भेष में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर
गोलीबारी कर दी, इसमें
11 लोगों
की मौत हो गई।
★ 2002 में
जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार हमला किया, पहला
30 मार्च
और दूसरा 24 नवंबर
को। इन दोनों हमलों में 15 से
ज्यादा लोगों की मौत हो गई।
★ 2002 क्वासिम
नगर नरसंहार, 29 हिन्दू
मजदूरों को मारडाला गया। इनमें 13 महिलाएं और एक बच्चा शामिल था।
★2003 नदिमार्ग
नरसंहार, पुलवामा
जिले के नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने 24 हिंदुओं को मौत के घाट उतार
दिया था।
★नदिमार्ग गांव में छोटे बच्चों को आतंकियों ने
नहीं छोड़ा और उन्हें गोलियों से भून डाला था !
★कश्मीर घाटी में लगभग 300 से
ज्यादा महिला और बच्चों को आतंकियों ने मार डाला था, घाटी में हिंदुओं के घर के बाहर
कश्मीर छोड़कर भाग जाने के मैसेज लगाए गए थे।
★कश्मीरी पंडितों की कोठियां आज भी खाली पड़ी हैं।
सैकड़ों पर मुस्लिम्स ने कब्जा कर लिया !
★कश्मीर में आतंकियों ने कई मंदिर भी तोड़ दिए थे।
★लगभग ढाई लाख कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ कर पलायन
कर चुके हैं, वहीं
कुछ आज कैम्पों में रहने को मजबूर है।
★कश्मीर में हुए पंडितों के नरसंहार के पीछे आम
कश्मीरी मुस्लिम तत्व बताए जाते हैं।
★अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को भी
निशाना बनाते थे आतंकी।
★संग्रामपुरा में कई महिलाओं से बलात्कार भी किए गए, वहीं
कई बच्चों को तड़पाकर मारा गया !
★नदिमार्ग में हिंदुओं का अंतिम संस्कार मुस्लिमों
ने किया था,क्योकि
गाँव में कोई हिन्दू जीवित नहीं बचा था !
★इन हत्याओं,बलात्कारों, पलायन
के पीछे अब्दुल्ला,मुफ़्ती
खानदानों और हुर्रियत का खुला समर्थन था !
■देश के अन्य हिंदू कान में तेल डाल कर स्वार्थी
नींद सोते रहे ■
#खून_के_आंसू
Poet,Writer, Activist in Exile
सम्पर्क : बी-90/12, भवानीनगर, जानीपुर , जम्मू-180007
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